वेतवा के तट पर ठाडे मुनिराज ।
नगन दिगंबर है जग के सरताज ।।
ममल भाव को धरकर ,
करते कर्मो से दंगल ।
वियावान जंगल मे,
कर रये है मंगल ।।
अपनी आतम के उनने,
सुधारे सब काज।
नगन दिगंबर- ----------

शांत छवि तुम्हारी,
लगे मनहारी ।
महावीर के लघु नन्दन,
करे शिवपुर की तैयारी।
सारी दुनिया करती है,
देखो इन पर नाज ।
नगन दिगंबर- -----------

यथा नाम तथा गुण,
गुण शोभित नाम ।
तारण तरण तुमने,
सुधारे सबके काम।
गुरुवर तूने ही रखी,
सारे जग की लाज ।
नगन दिगंबर- ---------

ऐसा ध्यान लगाया तुमने,
प्रगटे तीनो ज्ञान ।
वीर प्रभु का मार्ग बताकर,
जग का कर दिया कल्याण ।
"अंतिम " तू स्वयं भगवान है ,
कह गये योगीराज ।।
नगन दिगंबर- ---------
वेतवा के तट- ------------

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