दश लक्ष्णी धर्म का ,
आया ये त्यौहार है ।
कि जय जयकार है,
कि जय जयकार है।
इन दश धर्मो से मिलता मुक्ति का द्वार है।
कि जय जयकार----------
उत्तम क्षमा जहाँ पर है ,
वहाँ शत्रु ना कोई होता ।
उत्तम मार्दव से ही ,
नाना भेद ज्ञान है होता ।।
आर्जव के दिन कपट के बिन ,
आत्मा का करो श्रृंगार है ।
कि जय जयकार--------------

चौथा है सत्य धरम ,
सदा सत्य ही वोलो ।
कि जय जयकार --------------

उत्तम शौच धर्म से ,
संतोष सदा ही पालो ।
उत्तम संयम तप से ,
तुम कर्म शत्रु को टालो ।।
ऑठवाॅ है त्याग धरम,
ये त्याग का त्यौहार है।
कि जय जयकार--------------
इन दश धर्मो से-----------------

उत्तम आकिंचन से ,
संसार भ्रमण है रुकता ।
उत्तम ब्रह्मचर्य से ,
नर नारायण है बनता ।।
"अंतिम" अब हिम्मत करो ,
येअवसर ना आता बारंबार है।
कि जय जयकार--------------
दश लक्ष्णी धर्म की महिमा अपरंपार है ।
कि जय जयकार -------
इन दश धर्मो से --------------
कि जय जयकार ----------

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