दश लक्ष्णी धर्म को तू धार कर ,
जा कभी मंदिर मे तू स्वाध्याय कर ।
दश लक्ष्णी -----------

बना कबसे है तू पागल ,
ममता ने किया घायल ।
मिली ये जिंदगानी है ,
कुछ दिन की कहानी है ।
चेत रे चेतन ज्ञानी ,
समझा रई है जिनवाणी ।
इनके चरणो मे जो आता है ,
सच्चा सुख वो ही पाता है ।
इनके वचनो पे सत् श्रद्धान कर ,
जा कभी मंदिर मे-----------
दश लक्ष्णी -----------

कभी मानव कभी नरक,
कभी तिर्यंच कभी स्वरग।
चारो गतियो मे तू गया ,
पर तू भूल सब गया ।
उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव को,
सत्य शौच संयम तप को ।
त्याग धरम को पाय ले ,
आकिंचन ब्रह्मचर्य अपनाय ले ।
अपने सत् स्वरुप को पहचान कर
जा कभी मंदिर -------------
"अंतिम"अब सत् श्रद्धान कर
जा कभी तारण के दरवार पर ।।
दश लक्ष्णी------------

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