गुरुवर ने इस जग को
क्या राह दिखा दी है ।
ग्रंथो मे दिया अमृत
ये हम पर दया की है ।।
गुरुवर ने इस- --------------


घूमा है चौरासी मे,
वेहोश रहा बेखबर ।
कितने नरभव मिले ,
संभला ना उनको पाकर ।।
कर्मो के अधीन रह कर ,
क्या गति बना ली है ।
गुरुवर ने इस जग- -------------

जिन धर्म के जैसा,
धर्म मिलता है कहा सबको ।
जिनदेव मिले तुमको ,
नही जाना है उनको ।।
अदेव कुदेवो मे ही ,
क्यो उमर गवाॅ दी है ।
गुरुवर ने इस जग- --------------


निर्ग्रंथो के जैसा ,
नहीं गुरु कोई होगा ।
केवल वीतरागी ही ,
सच्चा गुरु होगा ।।
ऐसे तारणहारे को ,
डोर थमा दी है ।
गुरुवर ने इस जग- -------------

चौदह ग्रंथ है ऐसे ,
जैसे छोटी सी गागर ।
उनमें ज्ञान भरा ऐसा ,
जैसे जल से महासागर।
गुरु तारण तरण ने तो,
जिनवाणी सुना दी है ।
गुरुवर ने इस जग- ---------------


ये तो वीतरागी है ,
नही राग का अंश कहीं।
कहीं रागी कहीं द्वेषी ,
ऐसी शरण है और नही।।
अपने मे ही रहना "अंतिम ",
यही गुरु ने सला दी है ।
गुरुवर ने इस जग- --------------
ग्रंथो मे दिया ----------------
गुरुवर ने इस जग- -----------

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