तर्ज- दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढाल

भटके हुये प्राणियों को ,तूने लिया संभाल।
तारण तरण ओ संत ,तेरी शान वेमिशाल।।
अज्ञान अंधकार मे,जलाई ज्ञान की मशाल ।
पुष्पावती के संत ,तूने कर दिया कमाल ।।
तारण तरण- ------------

धरती पे तूने अजब ,
करामात दिखाई ।
जिनवर की जिनवाणी ,
जन जन को सुनाई ।।
भटके हुये प्राणियों को,
शिव गैल दिखाई ।
इस दुनिया को शुद्धातम,
की महिमा बताई ।।
मिथ्यात्व ऊर पाखंड को,
तूने किया हलाल ।
तारण तरण ओ संत- --------------

वाणी तेरी सुनने को ,
आता था जमाना ।
वाणी मे तेरी ज्ञान का,
मिलता था खजाना ।।
तूने तो ठाना था ,
जाँत पाँत मिटाना ।
इन्सान को इंसान से,
भगवान बनाना ।।
दिया दिव्य ज्ञान ऐसा,
भई सीधी सभी की चाल ।
तारण तरण ओ संत- --------------

जब जब तेरा विगुल बजा,
जवान चल पडे ।
सेठ साहूकार ऊर,
निर्धन वान चल पडे ।।
हिन्दु मुगल जैन व ,
पठान चल पडे ।।महलो से नाता तोड़,
लुकमान शाह चल पडे।
कोटि कोटि जीवो ने ,
काटा चौरासी जाल ।
तारण तरण ओ संत- ------------

गुरु कोई हुआ है तो,
बस तू ही हुआॅ है ।
जिसने जिनवाणी का ,
संदेश सबको दिया है ।।
छोडा घर-वार भेष,
दिगंबर ले कर ।
ज्ञानामृत सभी दिया,
खुद जहर पीकर ।।
समाधि स्थल तेरा ,
तीर्थ निसई है विशाल ।।
तारण तरण ओ संत- -------------
पुष्पावती के संत-------------
तारण तरण ओ संत- -----------

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