तर्ज - छोडो कल की बाते है कल की बात पुरानी

छोडो पर की बाते
है आतम से लगन लगानी ।
मुक्ति को पाना है गर
तो सुनलो रे जब जिनवाणी ।।

वीर प्रभु की वाणी को हम भूल चूके है।
लख चौरासी गतियो मे हम घूम चुके है ।।
पा करके मानव तन आज सुहाना ।
भूल गया नरकन मे कैसे शूल चुभे है।।
मानव तन है
कुल जैन का
है दुर्लभ जिनवाणी
मुक्ति को पाना - -


अपनी आतम को हमने अब तक नही पहचाना ।
पर पदार्थो मे ही हमने सुख को माना ।।
लगन लगी ना कभी सच्चे देवो से ।
कुदेव अदेवो को ही था अब तक माना ।।
भूल जाओ तुम
इनको भैया
कहती है जिनवाणी ।
मानव तन है - - - - - - -


वीर प्रभु ने जो हमको है राह बताई ।
उसी राह पर चल कर उनने मुक्ति पाई ।।
सद्गुरु तारण स्वामी ने हमको बतलाया ।
आतम शुद्धातम की महिमा उनने गाई ।।
तारण तरण की
बात मान लो "अंतिम "
पाना है शिवधानी ।
मानव तन है कुल - - - - - - - -

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