कर्मो के बंधन मे ,
आतम ने मचाया शोर ।
आतम को अब जानलो तुम---2
इसके सिवा ना कोई ठौर ।
छोड दे मोह के बंधन को ,
थाम ले गुरु तारण की डोर ।
गुरु तारण के साँचे वोल--2
डार तू अपने मन पे डोर ।।
कर्मो के बंधन- ---------

अपने को जानने से ,
सर्व सुख आ जाते है।
आत्मा मे रहने से,
कर्म कट जाते है।।
जिनवर के वचनो पे,
यंकी तो होने दे ।
तेरे अंदर ही भगवन है,
समय मत खोने दे ।।
षटावश्यक ना जब तक ,
तुम श्रावक के पालोगे ।
सोचो तब तक तुम,
कैसे कर्मो को टालोगे ।।
हे जिनवर तेरी वाणी,सुन करके प्राणी
चल दे शिवपुर की ओर-------'कर्मो के------

जिन्हे तरना हो वो,
अपनेपन मे ही रम जाते है।
श्रद्धा के फूल तो फिर,
आतम मे खिल जाते है ।।
अज्ञानी ज्ञानियों को,
वावला दिखता है।
अज्ञानी भी ज्ञानियो को,
वावला कहता है।।
ले गुरुवर मे आ गया,
साॅरी दुनिया छोड के ।
तेरा दामन पकड़ लिया,
सारे बंधन तोड़ के।।
तेरे द्वार पे जो आ जायें,वो अपने मे रम जायें ।
उनको वंदन है कर जोर---कर्मो के बंधन- ------

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