वेतवा तट के किनारे,
भेष दिगंबर हो धारे ।
राजा हो या होय भिखारी,
माथा टेक रही है दुनिया सारी।।
जाति पाति को है विसारे----वेतवा तट- -------

छू:लेते है चरण जो इनके,
जीवन सँवर जाते है उनके ।
आके शरण मे तुम्हारे- ----वेतवा तट--------

इस जहाँ का ताज है तू,
मुक्ति पाने का राज है तू ।
तेरी शरण जिसको है मिलती,
उनकी बिगड़ी तकदीर है बनती ।।
जिनवर के वचन हे तारण तरण,
तुमने हृदय मे है धारे----------वेतवा तट- ------

कोई है ना इनके जैसा,
शरणागत को करे अपने जैसा।
ममल भाव मे हर पल रहते,
कुछ ना कहके सब कुछ कहते ।
हे तारण ज्ञानी शिवसुख दानी,
"अंतिम "तुम्ही को है पुकारे-------वेतवा तट- ------
राजा हो या-------

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