दोहा छंद
परमेष्ठी के पाँच पद, है सुख के आधार ।
ध्यान धरु उर नमन करु,करत मंगलाचार ।।

ऑचार्य तारण तरण, है रिद्धि- सिद्धि के धाम ।
चालीसा जिनका सदा, सिद्ध करे सब काम।।

चौपाई छंद

जय गुरुदेव त्रय ज्ञान के धारी,
हित उपदेशी जग उपकारी।1।
दुख दरिद्र उनका मिट जाता,
जो कोई द्वार तुम्हारे आता।2।

गढाशाह जी पिता तुम्हारे,
माँ वीरश्री की ऑख के तारे।3।
आकर गर्भ मे स्वप्न दिखाये ,
तभी नगर मे मुनिवर आये।4।

दे आहार स्वप्न फल जाना ,
शुभ लक्षण है मुनि ने बखाना।5।
होगा पुत्र एक सुन्दर तेरा,
जो सबके दुख को हर लेगा।6।

सुनकर हर्षित भये नर नारी,
जल्द ही आगई वह घडी प्यारी।7।
आई अगहन सुदी साते नामी,
जन्मे जग के तारण स्वामी।8।

देवों ने है अतिशय रचाया ,
बजी दुन्दभी ऑनन्द छाया।9।
पुष्पावती भी धन्य हो गई,
चारो तरफ थी खुशियाॅ छाॅ गई।10।

पांच वर्ष के हुये जब तारण,
ऑई पिता पे विपत्ति अचानक।11।
राजकोष के कागज जले सारे,
तारण ने ज्यों के त्यों कर डारे।12।

कोपा तव सुल्तान शाह पर,
भागे वहाँ से पुत्र को लेकर।13।
गढौला वन मे श्रुतमुनि देखे,
थे मंत्र सिद्ध करने को बैठे।14।

मुनि ने देखा बालक तारण,
मन्त्र सिध्द हो गया उसी क्षण।15।
वोले ज्ञानी है बडा तपस्वी ,
तेज देखकर बात है परखी।16।

यह सुन मात पिता हर्षाये ,
चले फिर सेमरखेडी आये।17।
ग्यारह बर्ष के हुए जब तारण,
देखा नाना का स्वर्गारोहण।18।

हुआ वैराग्य है समकित पाया,
अनित्य जग यह समझ मे आया।19।
भट्टारको से विद्या पढते ,
जिनवाणी का चिन्तवन करते।20।

क्रिया मे ही धर्म बताया ,
तारण को कुछ समझ ना आया।21।
हुये जब इक्कीश बरष के,
ब्रह्मचर्य व्रत धारण करके।22।

सेमरखेडी वन मे आये ,
वैठ गुफा मे ध्यान लगायें।23।
सप्तम प्रतिमा ली तीस बरष मे,
किया विहार फिर नगर नगर मे।24।

जात-पात का भेद मिटाया ,
सबको जैन धर्म बतलाया।25।
कहा जैन नही जनम से प्यारे,
जैन वही जो धर्म को धारे।26।

वोले सात व्यसन को त्यागो ,
अठरा क्रियाओं को पालो।27।
यह सुन मुस्लिम ब्रह्मण आये,
बचन गुरु के सुन सब हर्षाये।28।

लाखो शिष्य बने तव इनके,
स्वल्प शाह उर रुईया रमन से।29।
करत विहार सूखा मे आये,
चारो तरफ है अतिशय छाये।30।

सूखा चारो तरफ था सूखा,
हर प्राणी था प्यासा भूखा।31।
चरण पडत ही बदल गई काया ,
सूखे कुओं मे जल भर आया।32।

हुये अचंभित सब नर नारी ,
वोले महापुरुष है अवतारी।33।
आत्म ज्ञान है सबको कराया,
महावीर का मार्ग बताया।34।

साठ बर्ष मे दीक्षा धारी ,
भये दिगंबर महाव्रत धारी।35।
कई कठिन उपसर्ग भी आये,
जहर पिलाया मारने आये।36।

नदी वेतवा मे भी डुवाया ,
टापू बने है अतिशय राचाया।37।
तीन ज्ञान उपजे जब तुमको ,
देखा वीर के समवशरण को।38।

जागी पांच मतें तव प्यारी,
चौदह ग्रंथ रचे सुखकारी।39।
अंत निसई मे समाधी धारी,
जय जय हो गुरुदेव तुम्हारी।40।

जय जय हो गुरुदेव तुम्हारी,
जय जय हो गुरुदेव तुम्हारी।

दोहा छंद
तारण गुरु का चालीसा,पढे सुने जो कोय ।
सुख सम्पत्ति तुरत मिले,सफल कामना होय ।।

वीतरागता पूज्य हो,जिनवाणी को ध्याय ।
क्रम से मुक्ति मार्ग बने,यह"अंतिम"फल पाय ।।

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