आदिपà¥à¤°à¥‚ष आदीश जिन, आदि सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¿ करतार ।
धरम - धà¥à¤°à¤‚धर परमगà¥à¤°à¥‚, नमों आदि अवतार ।।
सà¥à¤°-नत - मà¥à¤•à¥à¤Ÿ रतन छवि करैं, अंतर पाप - तिमिर सब हरै ।
जिनपद बंदों मन वच काय, à¤à¤µ - जल - पतित उदà¥à¤§à¤°à¤¨ सहाय ।। 1 ।।
शà¥à¤°à¥à¤¤ - पारग इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¿à¤• देव जाकी थà¥à¤¤à¤¿ कीनी कर सेव ।
शबà¥à¤¦ मनोहर अरथ विशाल तिस पà¥à¤°à¤à¥ की वरनों गà¥à¤¨ - माल ।। 2 ।।
विबà¥à¤§ - वंदà¥à¤¯ - पद मैं मति हीन हो निरà¥à¤²à¤œà¥à¤œ थà¥à¤¤à¤¿ - मनसा कीन ।
जल - पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¿à¤®à¥à¤¬ बà¥à¤¦à¥à¤§ को गहैं, शशि - मंडल बालक ही चहैं ।। 3 ।।
गà¥à¤¨ - समà¥à¤¦à¥à¤° तà¥à¤® गà¥à¤¨ अविकार, कहत न सà¥à¤° - गà¥à¤°à¥‚ पावैं पार ।
पà¥à¤°à¤²à¤¯ - पवन - उदà¥à¤§à¤¤ जल -जनà¥à¤¤à¥, जलधि तिरै को à¤à¥à¤œ बलवंतॠ।। 4 ।।
सो मैं शकà¥à¤¤à¤¿ - हीन थà¥à¤¤à¤¿ करूà¤, à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ - à¤à¤¾à¤µ - वश कछॠनहिं डरूठ।
जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मृगि निज सà¥à¤¤ पालन हेत, मृगपति सनà¥à¤®à¥à¤– जाय अचेत ।। 5 ।।
मैं शठसà¥à¤§à¥€ हà¤à¤¸à¤¨ को धाम, मà¥à¤ तà¥à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ बà¥à¤²à¤¾à¤µà¥ˆ राम ।
जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पिक अंब - कली - परà¤à¤¾à¤µ, मधॠ- ऋतॠमधà¥à¤° करै आराव ।। 6 ।।
तà¥à¤® जस जंपत जिन छिनमांहि, जनम जनम के पाप नशाहिं ।
जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ रवि उगै फटैज ततकाल, अलिवत नील निशा - तम - जाल ।। 7 ।।
तà¥à¤µ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¤à¥ˆà¤‚ कहूठविचार, होसी यह थà¥à¤¤à¤¿ जन - मन - हार ।
जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ जल कमल - पतà¥à¤°à¤ªà¥ˆ परै, मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤«à¤² की दà¥à¤¤à¤¿ विसà¥à¤¤à¤°à¥ˆ ।। 8 ।।
तà¥à¤® गà¥à¤¨ - महिमा हत - दà¥à¤– - दोष, सो तो दूर रहो सà¥à¤– -पोष ।
पाप - विनाशक है तà¥à¤® नाम, कमल - विकाशी जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ रवि धाम ।। 9 ।।
नहिं अचंठजो होहिं तà¥à¤°à¤‚त, तà¥à¤®à¤¸à¥‡ तà¥à¤® गà¥à¤£ वरणत संत ।
जो अ - घनी को आप समान, करै न सो निंदित धनवान ।। 10 ।।
à¤à¤•à¤Ÿà¤• जन तà¥à¤®à¤•à¥‹ अविलोय, अवरविषैं रति करै न सोय ।
को करि कà¥à¤·à¥€à¤° - जलधि जल - पान, कà¥à¤·à¥€à¤° नीर पीवै मतिमान ।। 11 ।।
पà¥à¤°à¤à¥ तà¥à¤® बीतराग गà¥à¤¨ - लीन, जिन परमानॠदेह तà¥à¤® कीन ।
हैं तितने ही ते परमानà¥, यातैं तà¥à¤® सम रूप न आनॠ।। 12 ।।
कहà¥à¤ तà¥à¤® सà¥à¤– अनà¥à¤ªà¤® अविकार, सà¥à¤° - नर - नाग नयन मनहार ।
कहाठचंदà¥à¤° - मंडल सकलंक, दिन में ढाक - पतà¥à¤° सम रंक ।। 13 ।।
पूरन चंदà¥à¤° - जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ छविवंत, तà¥à¤® गà¥à¤¨ तीन जगत लंघंत ।
à¤à¤• नाथ तà¥à¤°à¤¿à¤à¥à¤µà¤¨ आधार, तिन विचरत को करै निवार ।। 14 ।।
जो सà¥à¤° - तिय विà¤à¥à¤°à¤® आरमà¥à¤, मन न डिगà¥à¤¯à¥‹ तà¥à¤® तौ न अचंठ।
अचल चलावै पà¥à¤°à¤²à¤¯ समीर, मेरू - षिखर डगमगै न धीर ।। 15 ।।
धूमरहित वाती गत नेह, परकाशै तà¥à¤°à¤¿à¤à¥à¤µà¤¨ धर à¤à¤¹ ।
वात - गमà¥à¤¯ नाहीं परचंड, अपर दीप तà¥à¤® बलो अखंड ।। 16 ।।
छिपहॠन लà¥à¤ªà¤¹à¥ राहॠकी छांहिं, जग परकाशक हो छिन मांहि ।
धन अनवतà¥à¤°à¥à¤¤ दाह विनिवार, रवितैं अधिक धरो गà¥à¤£ - सार ।। 17 ।।
सदा उदित विदलित तममोह, विघटित मेघ राहॠअविरोह ।
तà¥à¤® मà¥à¤– - कमल अपूरव चंद, जगत - विकाशी जोति अमंद ।। 18 ।।
निश - दिन शशि रवि को नहिं काम, तà¥à¤® मà¥à¤– - चंदद हरै तम धाम ।
जो सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¤¤à¥ˆà¤‚ उपजै नाज, सजल मेघतैं कौनहू काज ।। 19 ।।
जो सà¥à¤¬à¥‹à¤§ सोहै तà¥à¤®à¤®à¤¾à¤‚ही, हरि - हर आदिक में सो नाहिं ।
जो दà¥à¤¤à¤¿ महा - रतन में होय, कांच - खंड पावैं नहिं सोय ।। 20 ।।
नाराच छंद
सराग देव देख मैं à¤à¤²à¤¾ विशेष मानिया ।
सà¥à¤µà¤°à¥‚प जाहि देख वीतराग तू पिछानिया ।।
कछू न तोहिं देखके जहाठतà¥à¤¹à¥€ विशेखिया ।
मनोग चितà¥à¤¤ - चोर और à¤à¥‚ल हू न देखिया ।। 21
अनेक पà¥à¤¤à¥à¤°à¤µà¤‚तिनी नितंबिनी सपूत हैं ।
न तो समान पà¥à¤¤à¥à¤° और माततैं पà¥à¤°à¤¸à¥‚त हैं ।।
दिशा धरंत तारिका अनेक कोटि को गिनै ।
दिनेश तेजवंत à¤à¤• पूरà¥à¤µ ही दिशा जनै ।। 22 ।।
पà¥à¤°à¤¾à¤¨ हो पà¥à¤®à¤¾à¤¨ हो पà¥à¤¨à¥€à¤¤ पà¥à¤¨à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ हो ।
कहैं मà¥à¤¨à¥€à¤¶ अंधकार - नाश को सà¥à¤à¤¾à¤µ हो ।।
महंत तोहि जानके न होय वशà¥à¤¯ काल के ।
न और कोई मोख पंथ देय, तोहि टालके ।। 23 ।।
अनंत नितà¥à¤¯ चितà¥à¤¤ के अगमà¥à¤¯ रमà¥à¤¯ आदि हो ।
असंखà¥à¤¯ सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¿ विषà¥à¤£à¥ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤¯ हो अनादि हो ।।
महेश कामकेतॠयोग ईश योग जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो ।
अनेक à¤à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤°à¥‚प शà¥à¤¦à¥à¤§ संतमान हो ।। 24 ।।
तà¥à¤¹à¥€ जिनेश बà¥à¤¦à¥à¤§ है सà¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¨à¤¤à¥ˆ ।
तà¥à¤¹à¥€ जिनेश शंकरो जगतà¥à¤¤à¥à¤°à¤¯à¥€ विधानतैं ।।
तà¥à¤¹à¥€ विधात है सही सà¥à¤®à¥‹à¤– - पंथ धारतैं ।
नरोतà¥à¤¤à¤®à¥‹ तà¥à¤¹à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ अरà¥à¤¥ के विचारतैं ।। 25 ।।
नमो करूं जिनेश तोहि आपदा - निवार हो ।
नमो करूं सॠà¤à¥‚रि à¤à¥‚मि - लोक के सिंगार हो ।।
नमो करूं à¤à¤µà¤¾à¤¬à¥à¤§à¤¿ - नीर - राशि - शोख हेतॠहो ।
नमो करूं महेश तोहि मोख - पंथ देतॠहो ।। 26 ।।
( चैपाई )
तà¥à¤® जिन पूरन गà¥à¤¨ -गन à¤à¤°à¥‡, दोष गरà¥à¤µ करि तà¥à¤® परिहरे ।
और देव - गण आशà¥à¤°à¤¯ पाय, सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ न देखे तà¥à¤® फिर आय ।। 27 ।।
तरू अशोक - तर किरन उदार, तà¥à¤® तन शोà¤à¤¿à¤¤ है अविकार ।
मेघ निकट जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ तेज फà¥à¤°à¤‚त, दिनकर दिपै तिमिर निहनंत ।। 28 ।।
सिंहासन मनि - किरन - विचितà¥à¤°, ता पर कंचन - वरन पवितà¥à¤° ।
तà¥à¤® तन शोà¤à¤¿à¤¤ किरन - विथार, जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ उदयाचल रवि - तम - हार ।। 29 ।।
कà¥à¤¨à¥à¤¦ - पà¥à¤¹à¥à¤ª - सित चà¤à¤µà¤° ढà¥à¤°à¤‚त, कनक - वरन तà¥à¤® तन शोà¤à¤‚त ।
जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ सà¥à¤®à¥‡à¤°à¥‚ - तट निरà¥à¤®à¤² कांति, à¤à¤°à¤¨à¤¾ à¤à¤°à¥ˆà¤‚ नीर उमगंति।। 30 ।।
ऊà¤à¤šà¥‡ रहैं सूर दà¥à¤¤à¤¿ लोप, तीन छतà¥à¤° तà¥à¤® दिपैं अगोप ।
तीन लोक की पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾ कहैं, मोती - à¤à¤¾à¤²à¤°à¤¸à¥‹à¤‚ छवि लहैं ।। 31 ।।
दà¥à¤¨à¥à¤¦à¥à¤à¤¿ - शबà¥à¤¦ गहर गंà¤à¥€à¤°, चहà¥à¤à¤¦à¤¿à¤¶ होय तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥ˆ धीर ।
तà¥à¤°à¤¿à¤à¥à¤µà¤¨ - जन शिव - संगम करै, मानो जय जय रव उचà¥à¤šà¤°à¥‡à¤‚ ।। 32 ।।
मंद पवन गंधोदक इषà¥à¤Ÿ, विविध कलà¥à¤ªà¤¤à¤°à¥‚ पà¥à¤¹à¥à¤ª सà¥à¤µà¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ ।
देव करैं विकसित दल सार, मानों दà¥à¤µà¤¿à¤œ - पंकति अवतार ।। 33 ।।
तà¥à¤® तन - à¤à¤¾à¤®à¤‚डल जिनचंद, सब दà¥à¤¤à¤¿à¤µà¤‚त करत है मंद ।
कोटि शंख रवि तेज छिपाय, शशि निरà¥à¤®à¤² निशि करै अछाय ।। 34 ।।
सà¥à¤µà¤°à¥à¤— - मोख - मारग - संकेत, परम धरम उपदेशन हेत ।
दिवà¥à¤¯ वचन तà¥à¤® खिरैं अगाध, सब à¤à¤¾à¤·à¤¾ गरà¥à¤à¤¿à¤¤ हित साध ।। 35 ।।
( दोहा )
विकसित सà¥à¤µà¤°à¤¨ - कमल - दà¥à¤¤à¤¿, नख - दà¥à¤¤à¤¿ मिलिचमकाहिं ।
तà¥à¤® पद - पदवी जहठधरैं, तहं सà¥à¤° कमल रचाहिं ।। 36 ।।
जैसी महिमा तà¥à¤® विषै, और धरै नहिं कोय ।
सूरज में जो जोत है, नहिं तारागण होय ।। 37 ।।
( षटपद )
मद - अवलिपà¥à¤¤ कपोल - मूल अलि - कà¥à¤² à¤à¤‚कारैं ।
तिन सà¥à¤¨ शबà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤šà¤‚ड, कà¥à¤°à¥‹à¤§ उदà¥à¤§à¤¤ अति धारैं ।।
काल - वरन विकराल, कालवत सनमà¥à¤– आवैं ।
à¤à¤°à¤¾à¤µà¤¤ सो पà¥à¤°à¤¬à¤², सकल जन à¤à¤¯ उपजावे ।।
देखि गयंद न à¤à¤¯ करै तà¥à¤® पद - महिमा लीन ।
विपति रहित संपतà¥à¤¤à¤¿ सहित वरतै à¤à¤•à¥à¤¤ अदीन ।। 38 ।।
अति मद - मतà¥à¤¤ - गयंद कà¥à¤‚à¤à¤¥à¤² नखन विदारै ।
मोती रकà¥à¤¤ समेत डारि à¤à¥‚तल सिंगारै ।।
बांकी दाढ विशाल वदन में रसना लोलें ।
à¤à¥€à¤® à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• रूप देखि जन थरहर डोलें ।।
à¤à¤¸à¥‡ मृगपति पग - तलैं जो नर आयो होय ।
शरण गहे तà¥à¤® चरण की बाधा करै न सोय ।। 39 ।।
पà¥à¤°à¤²à¤¯ - पवनकर उठी आग जो तास पटंकर ।
बमैं फà¥à¤²à¤¿à¤‚ग शिखा उतंग पर जलैं निरंतर ।।
जगत समसà¥à¤¤ निगलà¥à¤² à¤à¤¸à¥à¤® कर देगी मानो ।
तड़तड़ाट दव - अनल जोर चहà¥à¤à¤¦à¤¿à¤¶à¤¾ उठानौ ।।
सो इक छिनमें उपशमै नाम नीर तà¥à¤® लेत ।
होय सरोवर परिनमै विकसित कमल समेत ।। 40 ।।
कोकिल - कंठसमान शà¥à¤¯à¤¾à¤® तन कà¥à¤°à¥‹à¤§ जलंता ।
रकà¥à¤¤ नयन फà¥à¤‚कार मार विष - कण उगलंता ।।
फण को ऊà¤à¤šà¥ˆ करे वेग ही सनà¥à¤®à¥à¤– धाया ।
तब जन होय निशंक देख फणपति को आया ।।
जो चाà¤à¤ªà¥‡ निज पगतलें वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥ˆ विष न लगार ।
नाग - दमनि तà¥à¤® नाम को है जिसके आधार ।। 41 ।।
जिस रनमांहि à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• रव कर रहे तà¥à¤°à¤‚गम ।
घन से गज गरजाहिं मतà¥à¤¤ मानों गिरि जंगम ।।
अति कोलाहल मांहिं बात जहठनाहिं सà¥à¤¨à¥€à¤œà¥ˆ ।
राजन को परचंड देख बल धीरज छीजै ।।
नाथ तिहारे नामतैं अघ छिनमांहि पलाय ।
जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिनकर परकाषतैं अंधकार विनशाय ।। 42 ।।
मारै जहाठगयंद कà¥à¤‚ठहथियार विदारै ।
उमगै रूधिर पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ वेग जलसम विसà¥à¤¤à¤¾à¤°à¥ˆ ।।
होय तिरन असमरà¥à¤¥ महाजोधा बल पूरे ।
तिस रन में जिन तोय à¤à¤•à¥à¤¤ जे हैं नर सूरे ।।
दà¥à¤°à¥à¤œà¤¯ अरिकà¥à¤² जीत के जय पावैं निकलंक ।
तà¥à¤® पद - पंकज मन बसै ते नर सदा निशंक ।। 43 ।।
नकà¥à¤° चकà¥à¤° मगरादि मचà¥à¤› करि à¤à¤¯ उपजावै ।
जामैं बड़ वा अगà¥à¤¨à¤¿ दाहतैं नीर जलावै ।।
पार न पावै जास थाह नहिं लहिये जाकी ।
गरजै अतिगंà¤à¥€à¤° लहरिकी गिनति न ताको ।।
सà¥à¤–सों तिरैं समà¥à¤¦à¥à¤° को जे तà¥à¤® गà¥à¤¨ सà¥à¤®à¤°à¤¾à¤¹à¤¿à¤‚ ।
लोल - कलोलन के षिखर पार यान ले जाहि ।। 44 ।।
महा जलोदर रोग, à¤à¤¾à¤° पीड़ित नर जे हैं ।
वात पितà¥à¤¤ कफ कà¥à¤·à¥à¤Ÿ आदि जो रोग गहे हैं ।।
सोचत रहैं उदास नाहिं जीवन की आशा ।
अति घिनावनी देह धरैं दरà¥à¤—à¥à¤‚ध निवासा ।।
तà¥à¤® पद - पंकज - धूल को जो लावैं निज - अंग ।
ते निरोग शरीर लहि छिन में होंय अनंग ।। 45 ।।
पाà¤à¤µ कंठतै जकर बाà¤à¤§ सांकल अति à¤à¤¾à¤°à¥€ ।
गाà¥à¥€ बेड़ी पैर मांहि जिन जाà¤à¤˜ विदारी ।।
à¤à¥‚ख पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ चिनà¥à¤¤à¤¾ शरीर दà¥à¤– जे विललाने ।
शरण नाहिं जिन कोय à¤à¥‚प के बंदीखाने ।।
तà¥à¤® सà¥à¤®à¤°à¤¤ सà¥à¤µà¤¯à¤®à¥‡à¤µ ही बंधन सब खà¥à¤² जाहिं ।
छिन में ते संपतà¥à¤¤à¤¿ लहैं चिनà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤¯ विनसाहिं ।। 46 ।।
महामतà¥à¤¤ गजराज और मृगराज दवानल ।
फणपति रण परचंड नीर - निधि रोग महाबल ।।
बंधन ये à¤à¤¯ आठडरपकर मानो नाशै ।
तà¥à¤® सà¥à¤®à¤°à¤¤ छिनमांहिं अà¤à¤¯ थानक परकाशै ।।
इस अपार संसार में शरन नाहिं पà¥à¤°à¤à¥ कोय ।
यातैं तà¥à¤® पद - à¤à¤•à¥à¤¤ को à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ सहाई होय ।। 47 ।।
यह गà¥à¤£à¤®à¤¾à¤² विशाल नाथ तà¥à¤® गà¥à¤¨à¤¨ संवारी ।
विविध वरà¥à¤£à¤®à¤¯ पà¥à¤¹à¥à¤ª गूà¤à¤¥ मैं à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ विथारी ।।
जे नर पहिरैं कंठà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ मन में à¤à¤¾à¤µà¥ˆà¤‚ ।
‘ मानतà¥à¤‚ग ’ ते निजाधीन शिव - लकà¥à¤·à¤®à¥€ पावैं ।। 48 ।।
( दोहा )
à¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤®à¤° कियौ, ‘ हेमराज ’ हित - हेत ।
जे नर पढे़ं सà¥à¤à¤¾à¤µà¤¸à¥‹à¤‚, ते पावैं षिव - खेत ।।